Sunday, November 25, 2012

अहो! ये स्वामीभक्ति धन्य है।

लोकपाल बिल पर राज्यसभा सलेक्ट कमिटी की रिपोर्ट आ गयी है।जिसमे सरकार द्वारा पहले पेश किये गये बिल में कई फेरबदल किये गये हैं।इन फेरबदल के बाद इस बिल को पहले के मुकाबले काफी बेहतर माना  गया है।लेकिन इस रिपोर्ट से एक महत्वपूर्ण वस्तु गायब है।
                   जिस करप्सन के कारण लोकपाल के मुद्दे पर इतना बड़ा आन्दोलन हुआ,और एक मजबूत लोकपाल की मांग पूरे देश में उठी उस करप्सन की गंगोत्री के बारे में इस बिल में क्या है? पिछले दिनों सामने आये सारे घोटालों से किसने सबसे ज्यादा फायदा उठाया? कोडियों के मोल या लगभग मुफ्त में लिए गये कोल ब्लाक्स हों या 2G स्पक्ट्र्म सबमे लूट मचाने वाला तो कॉर्पोरेट सेक्टर ही था।आइरन ओर माइंस से लेकर कीमती जमीन तक जिसने हडप करके डकार तक नही ली उस कॉर्पोरेट सेक्टर को इसमें शामिल क्यों नही किया गया?
                       जैसे जैसे घोटालों से पर्दा उठता गया दोनों बड़ी पार्टियों के नेता बेनकाब होते गये। ऐसा लगा जैसे दोनों में यह दिखाने की होड़ लगी हुई है की कौन ज्यादा स्वामी भक्त है।आज तक जितने भी घोटाले हुए उनकी जो भी जाँच हुई,लूटा गया एक भी पैसा वापिस नही आया।किसी भी बड़े उद्योगपति को न तो ब्लैक लिस्ट किया गया और न ही इसके लिए दोषी ठहराया गया। बहुत हुआ तो नीचे के कुछ लोगों पर केस दर्ज कर दिया गया।बड़ी बड़ी बातें की गयी और असली सवाल हमेशा गोल कर  दिया गया।
                         अब एक बार फिर कॉर्पोरेट मिडिया और दोनों बड़ी और कुछ छोटी पार्टियाँ मिलकर असली सवाल से ध्यान हटाने की कोशिश करेंगी।इस बिल को इस रूप में पेश किया जायेगा जैसे इस पर आम सहमती है।और जैसे यह बिल बेहतरीन है।संसद में अगर इसके खिलाफ कोई आवाज उठती भी है तो उसे न तो मिडिया अपनी खबरों में दिखायेगा और न ही अख़बारों में उसकी कोई खबर होगी।
                        अब इस सवाल पर माननीय अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल क्या इसमें कॉर्पोरेट सेक्टर को शामिल करने का दबाव डालेंगे?
                   पूरा देश एक बार फिर कॉर्पोरेट सेक्टर के प्रति सरकार और विरोधी दलों की स्वामी भक्ति देखेगा।

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