Wednesday, May 16, 2012

सरकार को काम करने से कौन रोक रहा है?

पिछले कई दिन से पूरे कार्पोरेट मिडिया में यह बहस चल रही है की सरकार को पैरालईसिस हो गया है . और सरकार कोई भी फैसला नहीं ले पा रही है। सरकार के बहुत से जरूरी बिल संसद में अटके हुए हैं। और इससे देश की माली हालत ख़राब हो रही है। और इससे उद्योग जगत में निराशा का माहोल बन गया है। जिसकी वजह से जीडीपी गिर रही है। सरकार के मुख्य सलाहकार का बयाँ आने के बाद इस बात ने ज्यादा जोर पकड़ लिया है। और पूरे मिडिया ने और उसमे बैठे एक्सपर्ट ये कह रहे हैं जैसे ये बयाँ अचानक उसके मूंह से निकल गया है। उसके बाद और पहले भी सरकार , और खासकर कांग्रेस के प्रतिनिधियों ने भी ये कहकर की गठ्बन्धन में शामिल पार्टियों के कारण सरकार को फैसले लेने में दिक्कत आ रही है। और सरकार तेजी से काम नहीं कर पा रही है। कांग्रेस के लोगों का कहना है की उसके सहयोगी और विरोधी दल अपने छोटे राजनितिक कारणों के कारण सरकार के सारे अच्छे कामों का विरोध कर रहे है।
क्या ये बात सही है?
                                  इसकी जाँच करने के लिए हमे थोडा पीछे जाना पड़ेगा . जब देश में अटल जी की सरकार थी तब देश के उद्योग जगत ने अपने फायदे के लिए कई फैसले करवाए. जिसमे पब्लिक सैक्टर के कई उद्योगों को निजी हाथों में बेचना भी शामिल है, पट्रोल पदार्थों का नियन्त्रण मुक्त करना आदि। सरकार जोर शोर से उदारीकरण के रास्ते पर चलने की घोषणा कर रही थी। सब कुछ उद्योग जगत की मर्जी के अनुसार हो रहा था। पूरा मिडिया जोर जोर से चिल्लाकर इंडिया शाईनिंग के दावे कर रहा था। चैनलों में बैठे एक्सपर्ट तरक्की के नये युग की बात कर रहे थे।  चुनाव में इस तरह का माहोल था जैसे अटल जी की सरकार भारी बहुमत से जीतने जा रही है। लेकिन जब रिजल्ट आये तो सब सन्न रह गये। मिडिया को सफाई नही सूझ रही थी। उद्योग जगत परेशान था और उसकी समझ में नही आ रहा था ऐसा क्यों हो गया। लेकिन सरकार,मिडिया,एक्सपर्ट और उद्योग जगत ये भूल गया था की वोट देश की जनता करती है, और उसकी परेशानियों कम होने की बजाये बढ़ी थी। गरीब और गरीब हुआ था और देश केवल देशी विदेशी पूँजी के फायदे के लिए अपनाई गयी नीतिओं के खिलाफ था।
              यूपीए -2 की सरकार ने भी लेफ्ट का दबाव हट जाने के बाद तेजी से उसी रास्ते पर चलना शुरू किया। लेकिन एक के बाद एक होने वाले चुनाओं में होने वाली पिटाई के बाद सरकार और उसके सहयोगियों का उत्साह ठंडा हो गया। और उसके सहयोगियों ने भी जनविरोधी फैसलों का विरोध करना शुरू कर दिया।
सरकार को काम  करने से जनता रोक रही है।
                               सरकार जो काम करना चाहती है वो सारे जनविरोधी हैं। जैसे पट्रोल का भाव बढ़ाना, कर्मचारियों के पेंशन फंड को शेयर बाजार में लगाना, पब्लिक सैक्टर के उद्योगों को निजी हाथों में बेचना, बैंक और बीमा में विदेशी पूँजी को ज्यादा हिस्सेदारी देना, नागरिक सुविधाओं का निजीकरण करना, रिटेल व्यापार में विदेशिओं को इजाजत देना आदि। ये सारे कदम जनता की तकलीफों को और बढ़ाने वाले हैं।
और जनता में इनका पुरजोर विरोध है, जिसके कारण सरकार के सहयोगी भी उसका विरोध करने पर मजबूर हैं।उद्योग जगत की लाख कोशिशों के बावजूद जनता के 
विरोध के कारन सरकार इन फैसलों को लागु नही कर पा रही है।
              अगर फिर भी सरकार जनता के विरोध की अनदेखी करके इन फैसलों को लागू करने की कोशिश करेगी तो उसे सबक सिखने के लिए तैयार रहना होगा।

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